कटते पेड़ उजड़ते आशियाने

वन प्रकृति द्वारा प्रदान किया हुआ एक खूबसूरत वरदान है। इसीलिए यह ओर भी जरूरी हो जाता है कि हम सच्चे मन से प्रकृति की रक्षा करें। वन जंगली जीव जंतुओं का संसार होता है। साथ ही यह धरती के सन्तुलन का आधार भी है। लेकिन आज इंसानी लालच ने जंगलों को पूरी तरह तबाह कर दिया है। जिसके चलते जंगली जानवर बेघर हो गए हैं। शहरों को अधिक विकसित बनाने की सोच ने पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित किया है। आज वनों को कटने से रोकना सम्पूर्ण देश के लिए एक आंतरिक युद्ध सा हो गया है। जहाँ हम जंगली जानवरों के घरों को बरबाद करके ये शिकायत करते हैं कि ये जानवर अब शहरों की ओर प्रस्थान के रहे हैं। आज के इस लेख में हम वनों की कटाई के कारण जंगली जानवरों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों तथा इसे रोकने के लिए हम क्या कर सकते हैं जैसे गम्भीर विषय पर चर्चा करेंगे।

वन कटान और जानवरों का उजड़ता घर-

जब जंगलों से पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जाती है तो उसे वन कटान कहा जाता है। नया शहर बसाने, नई बिल्डिंग बनाने, खेती फैलाने तथा लकड़ी पाने के उद्देश्य से पेड़ों को बिना सोचे समझे काट दिया जाता है। जिसका असर पर्यावरण पर तो पड़ता ही है वहीं दूसरी और कई जंगली जानवर अपने आवास से हाथ धो बैठते हैं। भौतिक सुविधाओं के लालच में लिप्त मानव यह बात भूल जाता है कि वन ही जंगली जानवरों का संसार है जहां उन्हें रहना, खाना, पीना और सुरक्षा जैसी सुविधाएं मिलती हैं। उदाहरण के लिए, जंगली जानवरों का शहरों की ओर रुख करना। हाथी समेत कई जानवर जंगलों में घूमते रहते हैं। लेकिन जब पेड़ काटे जाते हैं तब ये जानवर खाने और पानी की तलाश में शहरों तथा गाँवों की ओर आने लगते हैं। कई बार ये जानवर इंसानों पर हावी भी हो जाते हैं।

वन कटान का असर-

  • जंगली जानवर बेघर हो रहे हैं। कई प्रजातियां तो विलुप्त होने की कगार पर आ गयी हैं।
  • पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता जा रहा है।
  • मिट्टी की उर्वरता क्षमता घटती जा रही है।
  • बाढ़ और सूखा जैसी आपदाएं बढ़ती जा रही हैं।

हम क्या कर सकते हैं?

  • पेड़ काटने के बजाय अधिक से अधिक वृक्ष लगाएं तथा लोगों को भी पेड़ लगाने को प्रेरित करें।
  • वन्यजीव आअभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यानों की रक्षा करना है जरूरी।
  • लकड़ी और कागज़ का इस्तेमाल कम करें।
  • समाज मेंजागरूकता फैलाएं, और शुरुआत अपने घर से करें।

वनों का कटान हमारे समाज में व्याप्त एक बड़ी और गम्भीर समस्या है, जो कि घटने के बजाए दिनों दिन बढ़ती जा रही है। अपने शहर को टूरिज्म स्पॉट बनाने के लालच में लोग वनों का कटान करते जा रहे हैं। जिसके चलते शहर अपनी प्राकृतिक सुंदरता खो रहा है और विनाश की ओर बढ़ रहा है। अगर समय रहते हमने इस गम्भीर समस्या से निपटने का प्रयास नहीं किया तो वो ज्यादा दूर नहीं जब ये जंगली जानवर केवल एक इतिहास बनकर रह जाएंगे और केवल किताबों के पन्नों पर ही नज़र आएंगे। या फिर जानवर धीरे धीरे शहर में ही बसने लगेंगे और मानव जीवन पर एक बड़ा खतरा बन जाएंगे।

इसीलिए हम सबका यह कर्तव्य बन जाता है कि हम पेड़ों को बचाने के प्रयास में जुट जाएं। जैसे उत्तराखंड की गौरा देवी ने पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन शुरू किया था वैसे ही हमें भी अभी तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए पेड़ों को बचाना होगा। हमें यह बात जहन में बैठा लेनी होगी कि शहर की खूबसूरती भौतिक सुख सुविधाओं से नहीं बल्कि उसकी प्राकृतिक सुंदरता तथा हरियाली से है। जहां हम सुकून से बाहर टहल सकें और स्वच्छ वायु का आनन्द लें सकें।

“पेड़ काटोगे तो सिर्फ लकड़ियां नहीं खोओगे,

बल्कि उन बेजुबानों का संसार भी उजाड़ दोगे,

जो बेशक बोल नहीं सकते, पर जीते हैं हमारी ही तरह।”

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