
भारत देश में रिश्तों और परिवार को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहाँ हर उम्र के व्यक्तियों खासकर बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना हर व्यक्ति की खासियत रही है। एक समय था घर में कोई भी काम करना हो तो परिवार के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति की राय को सर्वोपरि माना जाता था। वे ही घर के केंद्र बिंदु होते थे। घर की भी जिम्मेदारियां उनके कंधों पर होती थी और परिवार सुख-शांति और समृद्धि के साथ जीवन व्यतीत करता था। परन्तु आज परिवार की यह तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। जहाँ पहले संयुक्त परिवारों को तरजीह दी जाती थी, जहां हर कोई मिलजुलकर एक ही छत के नीचे रहा करते थे आज वहां एकांकी परिवार को बढ़ावा मिल रहा है। आज समाज में भौतिक सुविधाएं बढ़ी हैं, जिसने सामाजिक संरचना को पूरी तरह बदल दिया है। जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव हमारे रिश्तों पर पड़ा है। जिसके चलते वृद्धाश्रम जैसा शब्द आज चलन में आ चुका है।
वृद्धावस्था शब्द उन वृद्धों के लिए आसरा होता है जिन्हें उनके परिवार द्वारा अपनाया नहीं जाता या जिनका कोई रिश्तेदार नहीं होता। यहां उन्हें रहने, खाने औऱ स्वास्थ्य संबंधी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं। एक समय था जब वृद्धाश्रम में गिने चुने लोग ही दिखायी पड़ते थे लेकिन अब तो यहां वृद्धों की संख्या बढ़ती जा रही है। परिवारों का आकार छोटा होते चले जाना, बच्चों का पढ़ाई या काम के लिए दूसरे शहर से देश में पलायन कर जाना, आर्थिक तंगी, समय का दबाव तथा वृद्धों को बोझ समझना इसके प्रमुख कारण हो सकते हैं।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वृद्धाश्रम में बुजुर्गों को अपने हमउम्र के साथी मिल जाते हैं जिससे उनका मन बहल जाता है। साथ ही वहाँ उनकी अच्छी देखभाल, सुरक्षित माहौल तथा चिकित्सा सुविधाओं का भी विशेष ध्यान रखा जाता है। लेकिन हमें यह बात याद रखनी होगी कि कोई भी संस्था कभी भी उस प्रेम और अपनेपन की जगह नहीं ले सकती जो हमें हमारे परिवार के लोगों से मिलता है।
वृद्धाश्रम में रह रहे वृद्धों की नज़र हमेशा गेट पर ही अटकी रहती है कि कब कोई उनका अपना उनसे मिलने आये। उनकी आंखों में अकेलापन साफ देखा जा सकता है औऱ चेहरे की मायूसी को साफ तौर पर महसूस किया जा सकता है। अक्सर ही एक सवाल उनको सताता है कि आखिर कहाँ उनकी परवरिश में कमी रह गयी जो उनके अपने बच्चे ही उन्हें बोझ समझने लगे हैं।
यह समाज का वह घिनौना रूप है जिसे केवल आलोचना करके नहीं सुधारा जा सकता। बल्कि इसके लिए अच्छे संस्कारों और शिक्षा का होना बेहद जरूरी है। अब समय आ चुका है कि हम एक बार फिर मूल्यों और संस्कारों के युग में लौट जाएं, जहां परिवार ही हमारी जिम्मेदारी और प्राथमिकता होती थी। इसके लिए हमें आज से ही कदम उठाने होंगे। बच्चों में बचपन से ही बड़े बुजुर्गों के प्रति सम्मान और प्रेम की भावना को विकसित करना बेहद जरूरी है। साथ ही समाज और सरकार को भी इस विषय पर विचार और प्रयास करना होगा, जिससे समाज में बुजुर्गों की अहमियत को समझा जा सके।