हाई कोर्ट का फैसला: लड़की के निजी अंग छूना और नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म नहीं

हाई कोर्ट को न्याय के घर के रूप में भी जाना जाता है। हर कोई सही फैसले की आस में न्यायालय का दरवाजा खटखटाता है जो कि सही भी है। लेकिन हाल ही में हाई कोर्ट के एक फैसले ने देशभर के लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि “किसी व्यक्ति द्वारा लड़की के निजी अंग को छूना और नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म नहीं माना जाएगा।” यह फैसला समाज में महिला सुरक्षा की दृष्टि से कई बड़े सवाल खड़े करता है। हालांकि इस फैसले को कुछ लोग कानूनी दृष्टि से सही कह रहे हैं तो कुछ लोग इस फैसले से नाखुश नज़र आ रहे हैं। इस लेख में हाईकोर्ट के इस फैसले के पीछे की मंशा और समाज पर पड़ने वाले प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

क्या है मामला?

एक व्यक्ति पर एक नाबालिग लड़की के निजी अंगों को छूने और नाड़ा तोड़ने का आरोप लगाते हुए परिवार ने इसे दुष्कर्म का मामला बताया और आरोपी के खिलाफ सख्त कार्यवाही की मांग की। मामला अदालत तक पहुंचा और हाई कोर्ट फैसला सुनाते हुए कहा कि केवल निजी अंगों को छूना और नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म की परिभाषा में नहीं आता। हाईकोर्ट का ऐसा फैसला सुन सभी लोग निराश हुए और यह मामला तूल पकड़ने लगा।

मामले पर हाई कोर्ट का तर्क-

अदालत ने भारतीय कानून की धारा 375 और 376 का हवाला देते हुए कहा कि दुष्कर्म केवल शरीर के अंगों को छूना तथा कपड़ोंके साथ छेड़छाड़ करना नहीं है। यौन संबंध बनाना तथा जबरदस्ती की गई शारीरिक संलिप्तता दुष्कर्म की परिभाषा में शामिल है। इसीलिए केवल नाड़ा तोड़ना या शरीर के अंगों को छूना दुष्कर्म नहीं माना जाएगा। हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह की हरकतों को “यौन उत्पीड़न” या “अश्लील हरकतों” में शामिल किया जा सकता है जिनपर अन्य धाराओं के तहत कार्यवाही होगी।

लोगों की प्रतिक्रिया-

हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद समाज में तरह तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई है। कई लोगों का मानना है कि इससे महिला सुरक्षा पर सबसे बड़ा खतरा जन्म लेगा। इसीलिए ऐसे मामलों में कठोर कार्यवाही करनी चाहिए। वहीं दूसरी ओर कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार अदालत द्वारा यह केवल कानून की व्याख्या की गई है। इसे सही सन्दर्भ में देखना उचित होगा।

हमारे समाज में महिलाएं पहले से ही असुरक्षित महसूस करती हैं। हाई कोर्ट द्वारा मामले को इस तरह से परिभाषित करना तथा धाराओं की व्याख्या करना कई तरह के सवाल मन में पैदा करता है। जहां एक ओर यह फैसला कानूनी रूप से सही है तो वहीं दूसरी ओर महिला सुरक्षा की चिंता को पुनः बढा दिया है।

यदि हाई कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला कानूनी तकनीकी पहलुओं पर सही बैठता है तो महिलाएं समाज में केवल एक खिलौना बनकर रह जाएंगी। वह पल दूर नहीं होगा जब आरोपी इस तरह कि हरकत दोबारा करने से ज़रा भी संकोच नहीं करेगा। जहां हमारे समाज में महिलाओं को देवी का स्वरूप माना जाता है वहाँ महिला सुरक्षा और सम्मान सर्वोपरि होना चाहिये। फिर चाहे मामला छेड़छाड़ का हो या फिर दुष्कर्म का। आखिर में इतना ही कहूंगी-

“महिलाओं की कद्र करें,

यही जननी है, यही जन्मदाता भी।”

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