
होली रंगों का त्यौहार है जो पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत और खुशियों का प्रतीक है जो कि हर वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन हर ओर गुलाल के रंगों के साथ खुशियों के रंगों का मिश्रण दिखाई देता है। यह एक ऐसा त्यौहार है जिसमें रंगों से खेलने के अलावा कई धार्मिक, पौराणिक और आर्थिक मान्यताओं का संगम भी देखा जाता है।
होलिका दहन के साथ शुरू होता यह त्यौहार हमें इस बात का एहसास कराता है कि अन्याय और अहंकार का अंत होना निश्चित है। इसके बाद शुरू होती है रंगों वाली होली। इस दिन तरह तरह के नमकीम और मीठे पकवान बनाए जाते हैं। हर उम्र के लोगों में इस त्यौहार को लेकर एक अलग ही उमंग दिखाई पड़ती है।
इस त्यौहार को मनाने के पीछे कई मान्यताएं जुड़ी हैं। एक मान्यता यह है कि यह त्यौहार भगवान श्रीकृष्ण और राधा की बाल लीलाओं से जुड़ा है। एक अन्य मान्यता यह है कि यह त्यौहार ऋतु परिवर्तन को दर्शाता है। इस पर्व के बाद से सर्दियाँ धीरे धीरे कम और फिर खत्म हो जाती हैं तथा वसन्त ऋतु अपने सम्पूर्ण योवन पर होता है और एक नए मौसम की खूबसूरती से हमें परिचित करवाता है।
होली का त्यौहार केवल खेल तक सीमित नहीं है बल्कि यह हमें आपसी प्रेमभाव और भाईचारे के साथ रहने का अवसर देता है। इस दिन लोग पुराने लड़ाई झगड़े भुलाकर रंग लगाकर एक नए रिश्ते की शुरुआत करते हैं। यही वजह है कि यह त्यौहार हमारे देश का सबसे कलरफुल और आनंद से भरा दिन होता है। इस लेख में हम बताएंगे कि होली मनाने के पीछे क्या वजह है तथा इससे जुड़ी मान्यताओं और कहानियों को उजागर करेंगे।
होली मनाने का पौराणिक महत्व-
होली मनाने के पीछे एक पौराणिक महत्व भी है, जो कि भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप से जुड़ा है। हिरण्यकश्यप एक बहुत शक्तिशाली असुर राजा था, जिसे अपनी ताकत पर बहुत अभिमान था। उसने सभी को आदेश दे रखा था कि वे केवल उसी की पूजा करेंगे लेकिन उनका स्वयं का पुत्र भगवान विष्णु का भक्त था। इस बात से हिरण्यकश्यप बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने पुत्र प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किये, जिसमें वे हमेशा असफल हो जाते थे। अंत में उन्होंने अपनी बहन होलिका से मदद लेने की सोची जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गयी लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ और होलिका वहीं जलकर समाप्त हो गई। यही वजह है कि होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। जो कि बुराई पर अच्छाई की जीत का सूचक है।
रंगों वाली होली का महत्व-
होलिका दहन के बाद गुलाल से खेलकर होली का पर्व मनाया जाता है। जो कि श्रीकृष्ण और राधा से संबंधित है। कहा जाता है श्रीकृष्ण सांवले होने के कारण इस बात से चिंतित थे कि राधा और उनकी अन्य गोपियां गोरी हैं। जिसके बाद माता यशोदा ने कान्हा को सुझाव दिया कि वे राधा के चेहरे पर रंग लगा सकते हैं। कान्हा ने ऐसा ही किया और तभी से रंगों वाली होली खेलने की परंपरा शुरू हो गई।
नई फसल और बदलते मौसम का त्यौहार-
रंगों का त्यौहार होने के साथ-साथ होली नई फसल और बदलते मौसम का भी सूचक है। इस पर्व के बाद से वसन्त ऋतु की शुरुआत हो जाती है और किसान नई फसलों को खेतों में उगाना शुरू कर देते हैं। खुशियां बांटते इस त्यौहार में लोग एक दूसरे को पकवान और मिठाइयां खिलाते हैं और पुराने गिले शिकवे मिटाकर एक दूसरे को गले लगाते हैं।
होली वह पर्व है जहां हम हमारी संस्कृति, परम्पराओं और मूल्यों को दिल से तवज्जो देते हैं। यह हमेशा सच्चाई और अच्छाई की मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है और यह संदेश देता है कि बुराई का अंत जरूर होगा। होलिका दहन हमें हमारे अंदर की ईर्ष्या और बुराइयों को समाप्त करने का संदेश तथा रंगों वाली होली प्रेम और मिलजुलकर रहने का संदेश देती है।
अंत में, मैं यही कहूंगी होली केवल रंगों का पर्व नहीं है बल्कि यह प्रतीक है प्रेम का, हमारे अंदर की बुराइयों को समाप्त करने का। इसीलिए जब भी होली खेलें इस बात का ध्यान रखें कि किसी को किसी भी तरह का नुकसान न हो। साथ ही पर्यावरण के प्रति भी जागरूक रहें और खुशियों के साथ एक नए मौसम का स्वागत करें।
“उम्मीद करती हूँ होली के रंगों की तरह आपका जीवन भी कलरफुल हो।”
हैप्पी होली इन एडवांस।।
होली मनाएंगे और जानेंगे इसका महत्व तो सोने पर सुहागा हो जाएगा। आप ऐसे ही लिखते रहिए हम आपको पढ़ते रहेंगे, रोज कुछ नया जानने को मिलता है।