वृद्धाश्रम का बढ़ता चलन: कारण और समाधान

भारत में परिवार और समाज के बीच बुजुर्गों का स्थान हमेशा से सम्मान और आदर का रहा है। माता-पिता को भगवान का स्वरूप मानने वाली भारतीय संस्कृतियों में वृद्धजनों की सेवा को जीवन का परम कर्तव्य माना गया है। लेकिन आधुनिक युग में बदलते सामाजिक ढांचे और जीवनशैली के कारण यह तस्वीर तेज़ी से बदल रही है। वृद्धाश्रम, जो कभी आपातकालीन स्थिति में बुजुर्गों के लिए एक सहारा होता था अब कई परिवारों के लिए सामान्य विकल्प बन गया है।

इस प्रवृत्ति ने न केवल हमारी सांस्कृतिक और नैतिक मान्यताओं को चुनौती दी है बल्कि यह प्रश्न उठाया है कि क्या आधुनिकता की ओर बढ़ते हुए हम अपने बुजुर्गों के प्रति अपने दायित्व को भूलते जा रहे हैं? वृद्धाश्रम का बढ़ता चलन एक गहन सामाजिक समस्या है जो व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामुदायिक स्तर पर विचार और समाधान की मांग करती है।

वृद्धाश्रम का बढता चलन: मुख्य कारण-

1.परिवार की बदलती संरचना- आधुनिक युग में संयुक्त परिवारों का स्थान एकल परिवार में ले लिया है। युवा रोजगार, शिक्षा के लिए नगरों में चले जाते हैं जिससे बुजुर्ग अकेले रह जाते हैं।

2.पीढ़ियों के बीच बढ़ती खाई- नई पीढ़ी के विचार और जीवनशैली बुजुर्गों से काफी अलग होती है। इस अंतर के कारण घर में मतभेद बढ़ते हैं और बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में जाने का मजबूर होना पड़ता है।

3.समाज में आत्मनिर्भरता की भावना- आजकल युवा अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में भेजना बेहतर समझते हैं।

4.स्वास्थ्य समस्याएं और देखभाल की कमी- बुजुर्गों की बढ़ती उम्र के साथ उनकी देखभाल करना कठिन हो जाता है। परिवार के सदस्यों के पास समय और संसाधनों की कमी के कारण उन्हें वृद्धाश्रम का सहारा लेना पड़ता है।

5.महिलाओं का कार्यक्षेत्र में योगदान- पहले महिलाएं घर में रहकर परिवार का ख्याल रखती थी लेकिन आज की महिलाएं भी कामकाजी हैं। जिससे बुजुर्गों की देखभाल के लिए समय नहीं मिल पाता।

वृद्धाश्रम के प्रभाव-

  • बुजुर्गों पर प्रभाव- वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्ग भावनात्मक रूप से अकेलापन महसूस करते हैं। वे अपने परिवार से कटे हुए महसूस करते हैं और अपने अपने आत्मसम्मान को खो सकते हैं।
  • समाज पर प्रभाव- यह चलन समाज के नैतिक मूल्यों पर सवाल उठता है। यह दर्शाता है कि हम अपने बुजुर्गों की सेवा और सम्मान करने में असफल हो रहे हैं।

समाधान-

  • संयुक्त परिवार की परंपरा को पुनर्जीवित करना- परिवार को बुजुर्गों के साथ रहना चाहिए और उनकी भावनाओं को समझना चाहिए। यह उनके जीवन में खुशी और सुरक्षा लाता है।
  • सरकारी योजनाएं- सरकार को बुजुर्गों के लिए विशेष योजनाएं और पेंशन सुविधा प्रदान करनी चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर रह सकें।
  • समाज की जागरूकता- समाज को यह समझने की जरूरत है कि बुजुर्ग हमारे ज्ञान और अनुभव का खजाना हैं। उन्हें अकेला छोड़ना हमारी नैतिक विफलता है।
  • बुजुर्गों के लिए सामुदायिक केंद्र- वृद्धाश्रम के बजाय बुजुर्गों के लिए एक ऐसे सामुदायिक केंद्र बनाए जाने चाहिए जहां वे समय बिता सकें, नए दोस्त बन सकें और विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा ले सकें।
  • पारिवारिक संवाद को बढ़ावा देना- परिवार के सदस्यों को बुजुर्गों के साथ अधिक समय बिताना चाहिए। उनके अनुभव और कहानियों से जीवन में सीख लेनी चाहिए।

वृद्धाश्रम का बढ़ता चलन न केवल समाज में हो रहे बदलावों को दर्शाता है बल्कि यह हमारे नैतिक मूल्यों और पारिवारिक संबंधों पर भी गहराई से सवाल उठाता है। जहां कुछ परिस्थितियों में वृद्धाश्रम बुजुर्गों के लिए एक सुरक्षित आश्रय बन सकता है वहीं यह भी जरूरी है कि यह अंतिम विकल्प बने ना कि प्राथमिक।

हमारे बुजुर्ग हमारे परिवार और समाज के नींव है। उनके अनुभव, ज्ञान और आशीर्वाद से हम न केवल सीखते हैं बल्कि उनके साथ समय बिताकर उन्हें वह सम्मान और स्नेह भी दे सकते हैं जिसके वे हकदार हैं। परिवार, समाज और सरकार को मिलकर ऐसे प्रयास करने होंगे जो बुजुर्गों को उनके परिवार के साथ जोड़कर रखें।

अगर हम अपने बुजुर्गों के साथ प्यार और सम्मान का व्यवहार करेंगे तो न केवल वे बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी एक स्वस्थ और नैतिक समाज का निर्माण करेंगी। वृद्धाश्रम का चलन कम करना हमारी संस्कृति और मानवता को बनाए रखने की दिशा में एक अहम कदम होगा।

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